रिपोर्ट:- विकास सिन्हा
गावां प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में इन दिनों बालू तस्करी का कार्य धडल्ले से किया जा रहा है और हो भी तो क्यों न जब यहां के स्थानीय पुलिस प्रशासन से लेकर जिले के तमाम बड़े पदाधिकारियों को तस्करों द्वारा ऊंची कीमत दे कर खरीद लिया गया हो। ये अधिकारी और पदाधिकारी ना सिर्फ बालू के इस अवैध तस्करी को अपनी सहमति भी दे रहे हैं बल्कि उनका पूरी तरह संरक्षण भी कर रहे है जिससे यहां कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है और ये हमारा कहना नही है बल्कि गावां की जनता का कहना है जो बालू के हो रहे इस अवैध तस्करी से परेशान हैं और नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे को लेकर चिंतित है।
बता दें कि 18 अक्तूबर, 2010 को एनजीटी की स्थापना पर्यावरण प्रदूषण या किसी अन्य पर्यावरणीय क्षति को रोकने व इसे सुलझाने के लिए किया गया था और इसमें 7 प्रकार के कानून लागू किए गए थे जिसमे एक कानून जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 भी लागू किया गया था। इसके साथ ही नदी के स्तित्व को बचाए रखने के लिए प्रत्येक वर्ष कुछ माह के लिए एनजीटी लागू किया जाता है और नदी से बालू के उठाव पर पूर्णतः रोक लगाई जाती है। मगर गावां प्रखंड में इसका संज्ञान लेने वाला कोई नहीं है जिस कारण यहां एनटीजी के नियमों को ताक पर रख कर प्रतिदिन 80 से 100 ट्रक भर कर बिहार, यूपी और बंगाल जैसे राज्यों में भेजा जा रहा है।
बताते चलें कि गावां प्रखंड के बिरने व मंझने नदी से प्रति दिन जेसीबी व ट्रैक्टर के माध्यम से बालू ट्रकों में लोड कर रात में भेजा जा रहा है। वहीं शायरा मोड में दो जगह, केंदुआडीह में दो जगह, बलथरवा रोड में 4 जगह, कन्हाईमारन में एक जगह, बागदेडीह पुराना डाबर मोड़ से अंदर एक जगह, पछियारीडीह नदी किनारे एक जगह, पछियारीडीह नदी के रास्ते में एक जगह बालू तस्करों द्वारा अवैध डीपो का निर्माण किया गया है। जहां दिन में ट्रैक्टर के माध्यम से इन जगहों में बालू का संग्रहण किया जाता है और रात को जेसीबी मशीन के माध्यम से ट्रक में लोड कर बिहार, यूपी और बंगाल जैसे अन्य राज्यों में भेजा जाता है।
गावां प्रखंड में बालू की तस्करी करने वाले बालू माफिया की संख्या 30 से 35 है। इनमें कुछ लोग आम ग्रामीण हैं तो कुछ सफेद पोश नेता है। इसके अलावा बिहार राज्य के भी कई लोग इस बालू तस्करी के कारोबार में शामिल हैं।
ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार नाम नही छापने की स्थिति में कुछ बालू माफियाओं ने बताया कि गावां पुलिस को एक ट्रक पर 1000 से 1500 रुपए तक दिया जाता है। इसके अलावा सतगावां पुलिस को प्रति ट्रक 500 से 1000 रुपए तक मिलता है, वहीं डीएमओ को लाखों रुपए का चढ़ावा इन तीन महीनो में चढ़ाना पड़ता है। इसके अलावा छोटे बड़े हिस्सों में वन अधिकारियों व अन्य पदाधिकारियों को भी अवैध कमाई में हिस्सेदारी दी जाती है।
साथ ही उन्होंने बताया कि अगर कभी किसी पदाधिकारी द्वारा कार्यवाही की जाती है तो उन्हे स्थानीय प्रशासन या अधिकारी द्वारा खबर कर दी जाती है जिससे वे सतर्क हो जाते है। वहीं जिनका सांठ गांठ नही है उन्हे खबर नहीं मिलने से वे पकड़े जाते है। इसके अलावा जब अखबारों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबर प्रसारित की जाती है या ग्रामीणों का अधिकारियों पर दवाब ज्यादा होता है तो एक दो ट्रकों को पकड़ कर बाकियों को भगा दिया जाता है।
मिली जानकारी के अनुसार और हाल के एसडीएम धीरेंद्र कुमार सिंह के नेतृत्व में हुई छापेमारी में यह बात सामने आई की बालू के तस्करी के लिए दूसरे जगह डंप यार्डों द्वारा दिए जा रहे चालान का बालू माफिया तस्करी करने के प्रयोग में ला रहे है। विगत हो कि दो दिन पूर्व छापेमारी में तीन ट्रकों को पकड़ा गया था जिसमें उन्होंने टुंडी से बालू बिहार ले जाने की बात कही थी। मगर जब उनसे टोल रसीद मांगा गया तो चालकों के पसीने छूट गए और उन्होंने अपनी गलती मानी। जिसके बाद उन ट्रकों को जब्त कर लिया गया।
प्रखंड में हो रही इस भरी पैमाने की बालू तस्करी ने नदी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है तो वहीं प्रशासन के इस रवैया से कई सवाल उठ रहे हैं। आखिर जब एनजीटी को जल संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाया गया है और उसे लागू किया गया है तो फिर इसमें कोताही क्यों बरती जा रही है? जब रखवाले ही कुछ पैसों के लालच में चोरों को संरक्षण देने का कार्य करेंगे तो जनता किस पर विश्वास करेगी। इसके अलावा भी कई सवाल है जो यह बालू तस्करी लोगों के मन में खड़े कर रहे है।
इधर, एसडीएम धीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि गावां प्रखंड से पुनः अवैध तरीके से बालू उठाव कर बिहार भेजने की सूचना मुझे भी मिली है। शीघ्र ही टीम गठन कर बड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए तैयारी की जा रही है।