वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है| सावित्री और सत्यवान के सम्मान में वट सावित्री की पुजा की जाती है| हिन्दु धर्म में इस व्रत का खास महत्व होता है| इस दिन सुहागिन महिलांए अपने पति की लम्बी आयु के लिए भगवान विष्णु और वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की विधी-विधान से पुजा करती है| मान्यता है कि वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है| आध्यात्मिक दृष्टि से वट वृक्ष दीर्घायु होता है, इसलिए अपने पति कि दीर्घायु के लिए वट सावित्री कि पुजा कि जाति है|
माना जाता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वट वृक्ष की छांव में ज्येष्ठ माह की आमावस्या तिथि के दिन प्राण-मृत्यु के देवता यमराज से बचाए थे , तभी से इस दिन वट वृक्ष की पुजा की जाती है| इस व्रत में वट वृक्ष की पुजा अर्चना की जाती है, वट वृक्ष में सिंदुर रोली, अक्षत, धुप, दीप आदी चढ़ाकर अपने सौभाग्यवती होने का प्राथना की जाती है |
वैज्ञानिक महत्व से बरगद के पेड़ और इसकी पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की सबसे ज्यादा क्षमता होती है |