रामकृष्ण परमहंस एक महान समाज सुधारक, गुरु, संत एवं विचारक थे। वे यह मानते थे कि इस दुनिया में एक ईश्वर है और उनके दर्शन किए जा सकते हैं। सभी धर्म भगवान को पाने के ही तरीके बताते हैं भले ही यह तरीके अलग-अलग हैं। उन्होंने सभी धर्मों का महत्व बताया और उनका मान सम्मान करने को कहा। उनके शिष्य – केशव चंद्र सेन और स्वामी विवेकानंद ने उनके विचारों को इस दुनिया में फैलाया। संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुकुर गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
कहा यह जाता है कि रामकृष्ण के जन्म लेने से पहले उनके माता-पिता को एक स्वप्न आया था। उनके पिता को यह महसूस हुआ था कि भगवान गदाधर उनके घर पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। ऐसा ही अनुभव रामकृष्ण की माता को भी हुआ था कि उन्होंने शिव मंदिर से अपने गर्भ में रोशनी प्रवेश करते हुए देखा थी। जब उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने इस बालक का नाम गदाधर रखा। इसी वजह से स्वामी रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम ‘गदाधर’ था। उनका बचपन एकदम सही चल रहा था पर जब रामकृष्ण 7 वर्ष के थे तब उनके पिता ने इस संसार को अलविदा कह दिया। इस वजह से उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
जब रामकृष्ण ने पढ़ाई लिखाई से अपना ध्यान हटा लिया तो उनका ध्यान मां काली की तरफ गया। वे मां काली को अपनी ओर इस ब्रह्मांड की माता के रूप में मानने लगे।
जब 1855 में राम कृष्ण के बड़े भाई रामकुमार को दक्षिणेश्वर काली मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया। इस कार्य में रामकृष्ण और उनके भांजे हृदय उनकी मदद करते थे। रामकृष्ण प्राय मां काली की मूर्ति को सजाया करते थे।