जैसे ही गुरूवार की सुबह कोलेश्वर महतो शव अफ्रीका के इस्थोपिया से बगोदर के पोचरी गांव पहुँचा तो परिजनों के हृदय विदारक चीत्कार से पूरा माहौल गमगीन हो गया।कोलेश्वर की विधवा पत्नी टेकनी देवी का रोते रोते बुरा हाल हो चुका है,वे लगातार अचेत हो जा रही थी।जिनको आस पास के महिलाओं द्वारा सम्भाला जा रहा था।लेकिन अपने पति के खोने के गम में वह किसी की नही सुन रही थी।उनके एक ही शब्द सभी को रुला दे रहे हैं कि हम केकर बिगडले रहनी हा। अब हमनी के केकरा सहारे रहब। उसकी पत्नी यह कह कर दहाड़ मार रही हैं कि मुझे क्या मालूम कि मेरे पति मुझे ठुकरा कर जिंदगी के उस दहलीज पर ले जाकर खड़ा कर देंगे कि जहां मेरे आंखों के आंसू ही सुख जाएंगे। विधवा पत्नी की बिलाप सुन कर उपस्थित लोग भी अपने-अपने आंसू को नही रोक पाए। मृतक कोलेश्वर महतो का शव 17 दिनो बाद जैसे ही उनके घर पहुंचा तो “क्या बूढ़े, क्या नौजवान एका एक उसके घर के तरफ दौड़ पड़े ।मृतक के पुत्र कामेश्वर महतो,कृष्णा कुमार व बेटी सरस्वती कुमारी मृत पिता के शव को निहार-निहार बिलख रहे थे।इस मौके पर प्रवासी मजदूरो के हित में कार्य करने वाले समाजसेवी सिकन्दर अली पोचरी पहुंचकर संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि झारखंड के नौजवानो की मौत के मुंह में समा जाने की यह पहली घटना नही हैं।इससे पहले भी कई लोगो की मौत हो चुकी हैं।ऐसे में सरकार को मजदूर के हित कार्य करने की जरूरत है।ताकि मजदूर का पलायन रूक सके।