गावां में दुर्गा पूजा का आयोजन अंग्रेजों के जमाने से ही होता आ रहा है।अठारहवीं शताब्दी में टिकैत पुहकरण नारायण सिंह ने गावां में मंदिर का निर्माण करवाकर दुर्गा पूजन का शुभारम्भ करवाया था। तबसे यहां लगातार दुर्गा पूजन का आयोजन होता रहा है। यहां शरदीय व वसंती दोनों अवसरों पर प्रतिमा का निर्माण करवाकर विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। यहां प्रखंड के कई पंचायतों के लोग प्रतिमा दर्शन व पूजन हेतु आते है। मंदिर परिसर में नवमी से एकादशी तक भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है।
मंदिर को दिया गया है आकर्षक लुक
पूर्व में मंदिर का निर्माण चुना पत्थर ,उड़द का पानी व बेल के लट्ठे आदि के मिश्रण से करवाया गया था। मंदिर जीर्णशीर्ण हो जाने के कारण स्थानीय धर्मप्रेमी समाजसेवियों की पहल पर लोगों के सहयोग से मंदिर कोभव्य रूप दिया गया है। मंदिर के उपरी भाग में दुर्गा की भव्य प्रतिमा बनावाया गया है, वहीं छत के निचले भाग में दुर्गा के नौ रूपों की संगमर्मर की प्रतिमा को भी स्थापित किया गया है। मंदिर की चाहारदिवारी व विशाल तोरणद्वार का भी निर्माण लोगों के सहयोग से बनाया गया है। तालाब के पास विशाल विसर्जन द्वारा भी बनाया गया है। मंदिर के अंदर एक छोटे कमरे में दक्षिणा काली की प्रतिष्ठा की गयी है। उक्त कमरे में ही कलश स्थापन कर नौ दिनों तक पाठ किया जाता है। उक्त कमरे में टिकैत परिवार के सदस्य, पुरोहित, आचार्य व नाई के अलावा आमलोगों का प्रवेश वर्जित रहता है। कहा जाता है कि पूर्व के समय में आमलोगों के मंदिर में प्रवेश कर जाने से क्षेत्र में काफी आपदायें आई थी। मंदिर में दक्षिणा काली की प्रतिष्ठा होने के कारण मंदिर को काली मंडा के नाम से पुकारा जाता है।मंदिर के गर्भगृह में दो दर्पण लगे हैं जिसे तात्कालीन टिकैत गिरजा प्रसाद ने बेल्जियम से लाकर लगवाया था। प्रतिमा प्रतिष्ठा के बाद दोनों दर्पण को प्रतिमा के दोनो ओर लगा दिया जाता है।
बली पूजा की है परम्परा
मंदिर में प्रतिदिन पूजा कमिटी की ओर से बकरों की बली दी जाती है वहीं नवमी के दिन क्षेत्र के लोग भी बली देते हैं । पूर्व में यहां भैसे की बली दी जाती थी लेकिन वर्मान में इस प्रथा को बंद कर दिया गया है। पूर्व में पुरनकी आहर में उगे कमल के फुल से पूजा अर्चना होती थी लेकिन इस समय कमल का खिलना बंद हो गया है। टिकैत के जमाने में राजसी विधि से बेलभरणी की पूजा होती थी जिसमे हाथी घोड़े पालकी छत्र आदि के साथ बेलभरणी की शोभा यात्रा निकाली जाती थी। पहले पूजन का आयोजन टिकैत परिवार के लोग अपने खर्च से करते थे लेकिन वर्तमान में ग्रामीणों के सहयोग से पूजन का आयोजन किया जाता है लेकिन टिकैत परिवार के सदस्य मुख्य पुजारी के रूप में रहते हैं। कुल मिलाकर गावां का दुर्गा पूजन क्षेत्र में आस्था व विश्वास के साथ मनाया जाता है।