झारखंड के बोकारो जिले एक ऐसा देवी का मंदिर है जहां महिलाओ का प्रवेश वर्जित किया गया है। शारदिय नवरात्र मे जहां पुरा देश एक ओर नारीशक्ति कि पूजा कर रहा है वहीं दूसरी और महिलाओ का पूजा मे प्रवेश वर्जित किया जाना अध्यात्म को चुनौती देते हुए एक अनबुझ पहेली बनी हुई है। महिला श्रद्धालु कहते है दूर से भी जो मन्नत मांगते है वो पुरा तो हो जाता है लेकिन मंदिर में घुसकर पूजा करने कि इच्छा होती है। लेकिन जो मान्यता है और जो घटनायें घट चुकी हैं उसके कारण डर लगता है। क्योंकि जिस मंदिर मे पहले महिला घुसी थी वहां अब पूजा नही होती है, भगवान ने सपने मे पुजारी को स्थान परिवर्तन करने को कहा और कहा कि यहां महिलाएं प्रवेश न करे। तब से बगल मे ही एक और मंदिर बना दिया गया और वहीं पूजा अर्चना होने लगी है। माँ को सिन्दूर बहुत पसन्द है इसलिए सिन्दूर से माँ पूरी तरह से ढकी हुई रहती है। महिलाएं 100 फिट दूर से ही मां दुर्गा की पूजा करती है। इतनी ही दूरी पर अगरबत्ती जलाकर एक सीमांकन किया हुआ है जहां से महिलाओ को एक कदम भी आगे नही जाना है। महिलाएं और लड़कियां श्रद्धालुओं के प्रसाद व अन्य पूजन सामग्री पुजारी आकर उस सीमांकन से ले जाते है। ऐसा नहीं है कि इन महिलाओं को अछूत मानकर या पुरूष वर्चस्व के कारण मंदिर के बाहर दूर से पूजा करना पड़ता है, बल्कि इसके पीछे अंधविश्वास की 100 वर्ष पुरानी मान्यता और महिलाओं में अनहोनी होने का डर है। जिसके मुताबिक ही महिलाएं दूर से मां दुर्गा की उपासना व पूजा अर्चना करती हैं। मान्यता है कि जब कभी भी कोई महिला मंदिर के अंदर जा कर पूजा करती हैं, तो किसी अनहोनी का शिकार हो जाती हैं। गांव की सैंकडो महिलाएं इसकी गवाह हैं। और महिलाओ के साथ साथ पूजारी भी कहते है कि एक बार एक महिला ने मंदिर के अंन्दर घुसकर पूजा करने की कोशिश कि और बली दिये हुए बकरे का प्रसाद रूपी मांस खाया तो वो पागल हो गई। जिसके बाद पूजारी को देवी मंगलचन्डी का सपना आया कि आज के बाद से महिला मेरे मंदिर मे न आये साथ ही जिस मंदिर में महिला गई थी उसका स्थान परिवर्तन किया जाय और नया स्थान मे मुझे स्थापित किया जाय। तब से आज तक मंदिर में न तो घुसकर पूजा अर्चना करती है और न ही चढाये हुए बकरे का मांस खाती है। यहां बलि चढ़ाये बकरे के सिर को जमीन मे गाड़ दिया जाता है और सीमांकित गये क्षेत्र में ही श्रद्धालु बकरे का भोज भात खा लेते है। साथ ही जिस पुरानी मंदिर मे महिला घुसी थी उसी के पास एक नये मंदिरका निर्माण किया गया और वहीं पूजा अर्चना होने लगी।
यह मंदिर बोकारो मुख्यालय से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर कसमार प्रखंड के टांगटोना पंचायत के कुसमाटाड़ गांव में है।