हरिवंश राय बच्चन हिंदी भाषा के कवी थे, ऐसा माना जाता हैं इनकी कविताओं ने भारतीय साहित्य में परिवर्तन किया था, इनकी शैली पूर्व कवियों से भिन्न थी. इसलिए इन्हें नयी सदी का रचियता कहा जाता हैं. इनकी रचनाओं ने भारत के काव्य में नयी धारा का संचार किया.
बच्चन साहब का जन्म 27 नवंबर 1907 को गांव बाबू पट्टी, ज़िला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के एक कार्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव एवं उनकी माता का नाम सरस्वती देवी था। उन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू और फिर हिन्दी की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम॰ए॰ और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू॰बी॰ यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच.डी.(Ph.D) पूरी की थी। इस दौरान वे देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी से भी जुड़े। 1952 में इंग्लिश लिटरेचर में PHD करने के लिए इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. इसके बाद वे अपने नाम के आगे श्रीवास्तव की जगह बच्चन लगाने लगे। वे दुसरे भारतीय थे जिन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई थी। वापस आकर वे फिर से यूनिवर्सिटी में पढ़ने लगे साथ ही साथ ऑल इंडिया रेडियो इलाहबाद में काम करने लगे। हरिवंश बच्चन जब बी.ए. प्रथम वर्ष में थे, उसी दौरान उनकी मुलाकात श्यामा बच्चन से हुई। जिसके बाद दोनों के बीच प्रेम हो गया। प्रेम होने के बाद 1926 में दोनों ने सबकी रजामंदी के शादी कर ली। शादी होने के कुछ समय बाद उनकी पत्नी श्यामा बच्चन का अचानक ही निधन हो गया। फिर कुछ समय बाद उन्होंने मिस तेजी सूरी से शादी कर ली
1955 में हरिवंशराय जी दिल्ली चले गए और भारत सरकार ने उन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त कर लिया। 1966 में इनका नाम राज्य सभा के लिए लिया गया था. 3 साल बाद भारत सरकार द्वारा इनको साहित्य अकादमी अवार्ड दिया गया। 1976 में हिंदी साहित्य में इनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। हरिवंशराय जी की मुख्य कृतियां निशा निमंत्रण, मधुकलश, मधुशाला, सतरंगिनी, एकांत संगीत, खादी के फूल, दो चट्टान, मिलन, सूत की माला एवं आरती व अंगारे है। हरिवंशराय जी का 18 जनवरी 2003 में 95 वर्ष की आयु में बम्बई में निधन हो गया। लेकिन वो आज भी अपने कृतियों जरिये जीवित है। इनकी रचनाओं ने इतिहास रचा और भारतीय काव्य को नयी दिशा दी जिसके लिए सभी इनके आभारी हैं और गौरवान्वित भी कि ऐसे महानुभाव ने भारत भूमि पर जन्म लिया।