अखंड सुहाग की कामना के साथ गुरुवार को बरमसिया समेत पूरे गिरिडीह में वट सावित्री का व्रत किया गया।यहां अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए महिलाए व्रत रखकर वट वृक्ष तथा यमदेव की पूजा अर्चना की। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक एवं पर्याय बन चुका है। वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री, दोनों का विशेष महत्व है।बताया गया कि सनातन संस्कृति के उत्कृष्ट सनातन जीवन मूल्यों के परिचायक इस व्रत से जुड़ी सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा से प्रायः हर सनातनधर्मी भली भांति परिचित है। वैदिक युग का वह अद्भुत घटनाक्रम आज भी पढ़ने-सुनने वाले दोनों को अभिभूत कर देता है। ऐसा विलक्षण उदाहरण किसी अन्य धर्म-संस्कृति में मिलना दुर्लभ है।कहते हैं कि महासती सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही मृत्यु के देवता यमराज से अपने मृत पति का पुनर्जीवन हासिल किया था। तभी से वट वृक्ष हिन्दू धर्म में देव वृक्ष के रूप में पूज्य हो गया।इस महाव्रत में स्त्री शक्ति की प्रबल जिजीविषा की विजय के महाभाव के साथ हमारे जीवन में वृक्षों की महत्ता व पर्यावरण संरक्षण का पुनीत संदेश भी छुपा है। इसी संदेश के साथ सुहागन महिलाओं ने खूब भक्ति भाव के साथ इस व्रत को रखा और नियम के अनुसार पूजा उपासना की।