तिसरी-तिसरी प्रखंड के भंडारी पंचायत के कारीपहरी आदिवासी बाहुल गांव है। कारीपहरी गांव में लगभग पंद्रह घर है जहां 200 लोग अपना जीवन यापन कर रहें हैं लेकीन बिजली पानी शिक्षा सड़क जैसे मूलभूत समस्या से राज्य अलग होने के 22 साल बाद भी आदिवासी जाति के लोग जूझ रहे है।ग्रामीणो को विभिन्न सरकारी महत्वकांक्षी योजना से वंचित है।सड़क ओर बिजली नही रहने से टापू की जिंदगी जीने को मजबूर है।रात होते ही अंधेरा होने के बाद ढिबरी युग जी रहे है।
बता दे कि की भण्डारी पंचायत के कारीपहरी गांव मौजा माधोबाग के अंतर्गत आती है।ग्रामीणो को लोक सभा,विधान सभा हो या पंचायत चुनाव मतदान करने के लिये भण्डारी उत्क्रमित विद्यालय जाना पड़ता है।जो कच्ची सड़क होकर लगभग पंद्रह किमी दूरी तय करना पड़ता है।जंगल व पगडण्डी के होकर से पैदल जाने पर पांच किमी दूरी है।गांव का विकास नही करने के कारण स्थानीय जनप्रतिनिधि व सरकार के प्रति काफी नाराजगी ब्याप्त है।गांव में सड़क,बिजली,पानी,शिक्षा स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था है।
कारीपहरी गांव में एक भी व्यक्ति को सरकारी आवास नही मिला है और न ही गांव की विकास को लेकर किसी राजनीतिक दल के लोग दिलचस्पी दिखाई।सरकार से मिलने वाली राशन भी डीलर डकार रहे है।गांव से कुछ दूरी तक ग्रामीणो ने श्रमदान कर कच्ची सड़क बनाई।जिसके बाद मनरेगा से मिट्टी मोरम डाला गया।
ग्रामीण कैला मरांडी ने कहा की गांव में विकास के लिये कोई सुधि नही लिया।वोट के समय उम्मीदवार वोट मांगने आते है।उस समय बड़ी बड़ी डींगें हांक कर चले जाते है।जितने के बाद गांव की ओर तक नही है।चूडका मुर्मू ने कहा कि सबसे अधिक शिक्षा ग्रहण करने वाले नोनिहलो को होती है।गाँव की छोटी बच्ची ने बताई की अंकल मेरे गांव में स्कूल नही है हमलोग प्रतिदिन पांच किलोमीटर पैदल चल कर पालमो स्कूल जातें है एक घंटा तो जाने में और एक घंटा आने में बीत जाता है किसी तरह पढ़ाई कर पातें है। गांव से पांच किमी दूर पालमो स्कूल जंगल व पहाड़ के बीच उबड़ खाबड़ रास्ता होकर पैदल जाना पड़ता है।छोटे छोटे बच्चे की शिक्षा का कोई व्यवस्था नही है। इसलिए कारीपहरी के ग्रामीणों ने मूलभूत सुविधाओं के लिए जिला प्रशासन से मदद की गौहर लगाईं हैं