माह-ए-रमजान के इस पाक पहले रोजे के साथ ही अकीदतमंदों ने बुराइयों से तौबा कर ली। रविवार की सुबह सेहरी के बाद दिन का रोजा रखा गया। गांडेय क्षेत्र भर में भी शनिवार देर शाम को खुले आसमान पर चांद का दीदार होते ही रमजान-ए-पाक माह की खुशियां चारों तरफ छा गई। अकीदतमंदों ने सोशल मीडिया फेसबुक, व्हाट्सएप आदि के जरिये एक-दूसरे को चांद दिखाई देने की मुबारकबाद देना शुरु कर दिया था। चांद दिखाई देने के बाद शहर से लेकर गांव देहात में भी मुस्लिम धर्मावलंबियों ने देर रात रोजे की सेहरी और इफ्तारी में प्रयोग की जानी वाली सामग्री की खूब खरीदारी करते दिखाई दिया।रमजान का चांद दिखाई देने के बाद क्षेत्र के विभिन्न मस्जिदों में जहाँ तरावीह पढ़ी गई। वहीं मस्जिदों में कुरानखानी और तरावीह आरंभ हो गई। घरों में भी अकीदतमंदों ने कुरान का इबादत शुरू कर दिया है। चांद का दीदार होते ही शाम को नमाज में उलेमाओं ने रमजान के महत्व पर प्रकाश डाला। उलेमाओं के मुताबिक रमजान के महीने में ही कुरान शरीफ नाजिल हुई थी।
यह इबादत और फजीलत का महीना है। इसमें किए गए सबाब का फल कई गुना अधिक मिलता है। उलेमाओं के मुताबिक रोजे का मतलब दिनभर सिर्फ भूखे प्यासे रहना नहीं है, बल्कि सभी तरह की बुराइयों से तौबा करना भी है। रमजान में हर अंग का रोजा होना चाहिए, यानी हाथों से न कोई गलत काम करना चाहिए और न ही जुबान से गलत बोलना चाहिए। इसके अलावा आंख, नाक, पैर सहित सभी अंगों पर नियंत्रण रखना चाहिए, ताकि इससे कोई गलत कार्य न हो सके। रोजा रखने वाला इंसान हमेशा बुराई से तौबा करता रहे। रोजा सूरज निकलने से लेकर सूरज डूबने तक का होता है। इस दौरान वह कुछ खा पी नहीं सकता। रोजे की शुरुआत में फजर की नमाज होती है और रोजा खोलने के वक्त मगरिब की नमाज होती है। दिनभर रोजा रखने के बाद ,रविवार शाम को मुकम्मल वक़्त पर मस्जिदों और घरों में इफ्तारी की गई। इसके बाद मस्जिदों में रात को तरावीह की नमाज अदा की जायेगी। अल्लाह तआला का कुदरत तो देखिये हर रोज की मुकाबले रविवार को मौसम ने भी अकीदतमंदों पर नरमी बरती। जिससे बिना किसी तरह की परेशानी उठायें वगैरह रोज़ेदारों ने अपनी रोजा मुक़म्मल तौर पर पूरा किया। अब इसी तरह पूरे माह अकीदतमंद रोजा रखकर इबादत में मशगूल रहेंगे। मालूम हो कि इस्लाम
में माह-ए-रमजान को अल्लाह का महीना माना गया है। यही कारण है कि इसे इबादत और बरकतों का महीना भी कहते हैं।