पिछले करीब डेढ़ वर्षों में भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कोरोना के कारण लाखों की जान गई। हम उन लाखों लोगों को असमय मृत्यु के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं लेकिन साथ ही क्या यह सोचना आवश्यक नहीं है कि उन लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। उन लाखों लोगों के घर परिवार को टूटने से बचाया जा सकता था। हजारों ऐसे बच्चे हैं जिनके सर से मां बाप का साया उठ गया और आज वो बच्चे अनाथ हो गए। क्या हमें यह चिंतन करने की आवश्यकता नहीं है कि उन हजारों बच्चों को अनाथ होने से बचाया जा सकता था। चलिए हम बीती बातों को भूल भी जाते हैं कि हमें अंदाजा नहीं था कि कोरोना इतना खतरनाक रूप दिखाएगा। हम मान लेते हैं कि हम इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन क्या हम भविष्य के लिए तैयार हैं ?कोविड-19 की First और Second Wave के बाद अब हमें सीखना होगा ताकि Third Wave आने से पहले अस्पतालों का इंफ्रास्ट्रक्चर, मेन पावर, ऑक्सीजन, आईसीयू इत्यादि सभी व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर लें ताकि Third Wave आने से किसी को बेड, ऑक्सीजन, एंबुलेंस, इंजेक्शन, दवाई इत्यादि उपलब्ध नहीं होने के कारण अपनी जान न गंवानी पड़े। फिर किसी बच्चे के सर से मां-बाप का साया ना उठे। फिर किसी परिवार को दर बदर की ठोकरें न खानी पड़े। आने वाले भविष्य के लिए हमें उपरोक्त सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त करनी होंगी क्योंकि अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो पिछले करीब डेढ़ वर्षो में जितनी मौतें हुई उन मौतों के लिए कहीं ना कहीं अस्पताल प्रबंधन और सरकार की गैर जिम्मेवारी और नाकामी ही नजर आती है। विभिन्न समाचार चैनलों, सोशल मीडिया और अन्य सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कुछ अस्पतालों ने कोविड-19 के इलाज के नाम पर लाखों रुपए चार्ज किए हैं। जिसकी खबर बाहर आ जाने पर राज्य सरकार ने कमेटी गठित कर उन अस्पतालों की जांच की है और कुछ अस्पतालों पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत एफ आई आर भी दर्ज की गई। जिन अस्पतालों पर FIR दर्ज हुआ है उनमें से कुछ अस्पतालों को क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया से NABH एक्रीडिटेशन भी प्राप्त है। NABH की मान्यता उन्हीं अस्पतालों को दी जाती है जो अस्पताल के सरकार के द्वारा तय किए गए मानकों को पूरा करती है और मरीजों को बेहतर से बेहतर सुविधा मुहैया कराती है। ऐसे अस्पतालों का समय-समय पर जांच करने की जिम्मेवारी NABH की है। इन अस्पतालों को बेहतर सुविधा देने के लिए सरकार ने पहले से ही ज्यादा दरें तय की हुई है । NABH और Non NABH के लिए अलग-अलग दरें पहले से ही तय है फिर भी तय दरों से ज्यादा पैसे चार्ज करना किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं है और यह NABH के कानून का सरासर उल्लंघन है और ऐसे अस्पतालों पर NABH के द्वारा कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता है।
यहां पर NABH की बात करना इसलिए उचित प्रतीत हो रहा है क्योंकि हमारे देश में रजिस्टर्ड सरकारी और गैर सरकारी लगभग एक लाख के आसपास अस्पताल हैं जो पेशेंट को वैसे तो बेहतर सुविधा प्रदान करने का दावा करती है लेकिन वास्तविकता देखी जाए तो सरकारी और गैर सरकारी बड़े-बड़े अस्पताल भी बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने में नाकाम हैं। शशि थरूर ने राज्यसभा में सवाल उठाया था कि एम्स और टीवीएम मेडिकल कॉलेज जैसे भरोसेमंद अस्पताल भी एन ए बी एच के मानकों को पूरा नहीं करते। अगर बड़े अस्पतालों को छोड़ दिया जाए तो छोटे स्तर के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। ऐसी परिस्थिति में हम यह कैसे दावा कर सकते हैं कि हम आने वाले कोविड-19 के Third Wave के लिए तैयार हैं। कोरोना से पीड़ित ऐसे रोगी जो गंभीर रूप से बीमार है वह बीमारी के दौरान ऐसे अस्पताल में जाना चाहते हैं जहां उनका बेहतर से बेहतर इलाज हो सके और इसके लिए वे तय दर के अनुसार पर्याप्त पैसा भी खर्च करने को तैयार हैं ऐसी परिस्थिति में उन अस्पतालों में जाना जहां मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है मौत को दावत देने के ही बराबर है। ऐसे में NABH मान्यता प्राप्त अस्पताल ही एकमात्र विकल्प के रूप में नजर आता है क्योंकि जब बात जान बचाने और बेहतर सुविधा की हो तो NABH से मान्यता प्राप्त अस्पताल ही एकमात्र विकल्प बचता है। भारत में NABH मान्यता प्राप्त अस्पतालों का आंकड़ा देखें तो लगभग 5000 से ज्यादा अस्पताल हैं। अगर उन्हीं अस्पतालों की सुविधाओं को दुरुस्त किया जाए और सही दिशा निर्देश देते हुए जांच के दायरे में रखकर तैयार किया जाए तो आने वाले कोविड-19 के Third Wave पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से उन अस्पतालों की गैर जिम्मेवारी और अनियमितता सामने आ रही है ऐसी स्थिति में Third Wave की तैयारियों के संबंध में चिंतित होना लाजमी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के एक रिपोर्ट के मुताबिक 15 नवंबर 2020 को मुंबई महाराष्ट्र में 13 ऐसे अस्पतालों का नाम सामने आया है जहां पर NABH के मानकों के विपरीत आईसीयू में आयुष डॉक्टरों की सेवा ली जा रही थी। यह आयुष डॉक्टर उन अस्पतालों में प्रैक्टिस कर रहे थे। जबकि NABH अस्पतालों में केवल MBBS एलोपैथी डॉक्टर ही मान्य हैं। इस संबंध में NABH के CEO डॉक्टर अतुल कोच्चर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि अब पंजाब, हरियाणा इत्यादि सभी राज्यों में एन ए बी एच अस्पतालों की जांच की जाएगी ताकि NABH के दिशानिर्देशों को लागू कराया जा सके। अब अगर हम डॉक्टर अतुल कोच्चर की बातों को ही माने तो क्या उक्त अस्पताल NABH के मानकों और दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं कर रही है और अगर नहीं कर रही है तो NABH उन अस्पतालों पर क्या कार्यवाही कर रही है ? इंडियन प्रोफेशनल नर्स एसोसिएशन क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पत्र लिखते हुए सूचित किया है कि NABH से मान्यता प्राप्त अस्पतालों में रोगी-डॉक्टर्स एवं रोगी-नर्स का अनुपात अच्छा होना आवश्यक है लेकिन ऐसे अस्पतालों में भी इतने अच्छे स्वास्थ्य अनुपात का अभाव है । फिर इन अस्पतालों को NABH की मंजूरी कैसे दे दी जाती है ? अब अगर पिछले दो वर्षों के दौरान जिन अस्पतालों को NABH मान्यता प्रदान की गई है क्या NABH के द्वारा उन अस्पतालों का बराबर जांच किया जा रहा है ? इसके अलावा जो अस्पताल इन मानकों को पूरा नहीं कर रही है क्या उन अस्पतालों पर कार्यवाही करते हुए उनकी मान्यता रद्द की गई या उन पर क्या कार्यवाही की गई ताकि बेहतर सुविधा के नाम पर जो ज्यादा पैसे लिए जा रहे हैं उसे बचाया जा सके ? या फिर NABH के पास जांच करने के लिए पर्याप्त टीम ही नही है ? सभी मामलों में सरकार को चाहिए कि सरकारी और गैर सरकारी वैसे अस्पताल जो बेहतर से बेहतर सुविधाएं देने में सक्षम है उन अस्पतालों पर विशेष निगरानी रखते हुए कोविड-19 के Third Wave के लिए तैयार करे। साथ ही साथ सरकार और ऐसे संगठन जो ऐसे अस्पतालों की निगरानी करती है वह ऐसे बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने वाले अस्पतालों की सूची जारी करें ताकि समय पर आम जनता को गंभीर परिस्थिति में उन अस्पतालों तक पहुंचना आसान हो और आने वाले Third Wave के दौरान लोगों को बेवजह परेशान न होना पड़े तभी हम आने वाले कोविड-19 के Third Wave के लिए तैयार रह सकेंगे।