रिपोर्ट:- विकास सिन्हा
गावां प्रखंड स्थित पटना में काली पूजन धूम धाम से मनाया जाता है।यहां काली पूजा अंग्रेजों के जमाने से होता आ रहा है। यहां पूजन का शुभारम्भ टिकैत मेदिनी नारायण सिंह के द्वारा प्रारम्भ किया गया था। बताया जाता है कि टिकैत श्री सिंह निःसंतान थे। कई पुत्रों का जन्म हुआ, लेकिन जन्म के उपरांत उनकी मृत्यु हो जाया करती थी। बाद में उन्होंने कोलकाता से दक्षिणेश्वर काली को लाकर उनकी स्थापना की व भक्ति भाव से अराधना करने लगे ।बाद में उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र प्राप्ति के बाद कार्तिक मास की अमावस्या दीपावली के अवसर पर काली की प्रतिमा का निर्माण करवाकर धूम धाम से अर्चना करने लगे। उनके द्वारा पटना चौक पर काली व देवी के मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस समय यहां टिकैत वंश की पांचवीं पिढी के लोग यहां निवास कर रहे हैं एवं आज भी पूजन आदि कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। उनके वंशज बाबूमणी सिंह उर्फ हरिनारायण सिंह आज भी पूजन के समय पुजारी के रूप में पूजन में बैठते हैं।
ग्रामीणों के सहयोग से होती है पूजा अर्चना
प्रारम्भ में कई वर्षों तक टिकैत की आने वाली पिढ़ी क्रमशः टिकैत कटि सिंह व टिकैत मसुदन सिंह आदि के द्वारा निजी खर्च पर पूजन का आयोजन किया जाता रहा। बाद में जमींदारी प्रथा की समाप्ति के बाद ग्रामीणों के सहयोग से पूजन का आयोजन होने लगा। इस समय यहां के ग्रामीणों के सहयोग से यहां प्रतिमा निर्माण कर धूम धाम से पूजन का आयोजन किया जाता है एवम् दीपावली के दूसरे दिन भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। मंदिर के जीर्ण शीर्ण होने के बाद ग्रामीणों द्वारा मंदिर का जीर्णोधार करवाया गया है। वर्तमान में उक्त स्थल पर विशाल राधा कृष्ण के मंदिर का भी निर्माण ग्रामीणों के सहयोग से करवाया जा रहा है। वर्ष में एक बार यहां अखंड कीर्तन का आयोजन भी ग्रामीणों द्वारा किया जाता है।
पूजा समिति के दरोगी स्वर्णकार, बासो यादव एवम लखन महतो आदि ने कहा कि पूर्व में यहां भैंसे की बलि दी जाती थी लेकिन छठ के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कार्तिक में कुष्मांड की बलि दी जाती है वहीं चैत्र व अश्विन नवरात्र के अवसर पर बकरों की बलि दी जाती है। उक्त स्थल क्षेत्र में आस्था का केन्द्र है।