26 नवंबर 2008 को लश्कर के 10 आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला बोला था। इस हमले में 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे जबकि 300 से ज्यादा जख्मी हुए थे। एक तरफ से कहें तो करीब साठ घंटे तक पूरी मुंबई बंधक बन चुकी थी। यह भारत के इतिहास का वो काला दिन है जिसे कोई भूल नहीं सकता। बताया जाता है कि 10 हमलावर कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे थे। इस नाव पर चार भारतीय सवार थे, जिन्हें किनारे तक पहुंचते-पहुंचते ख़त्म कर दिया गया। बताया जाता है कि इन लोगों की आपाधापी को देखकर कुछ मछुआरों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी। लेकिन इलाक़े की पुलिस ने इस पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी और न ही आगे बड़े अधिकारियों या खुफिया बलों को जानकारी दी। वहां से वे चार ग्रुपों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी मंजिलों की तरफ निकल पड़े। रात को साढ़े 9 बजे के आसपास छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर गोलीबारी की खबर मिली। यहां दो हमलावरों अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी जिसमे एक मुहम्मद अजमल क़साब था। पंद्रह मिनट में ही उन्होंने 52 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और 109 को ज़ख़्मी कर दिया।आतंकियों की यह गोलीबारी सिर्फ शिवाजी टर्मिनल तक सीमित नहीं थी। दक्षिणी मुंबई का लियोपोल्ट कैफे भी उन चंद जगहों में से एक था, जो आतंकी हमले का निशाना बना। उसके बाद ठीक 10:40 बजे विले पारले इलाके में एक टैक्सी को बम से उड़ाने की खबर मिली जिसमें ड्राइवर और एक यात्री मारा गया, तो इससे पंद्रह बीस मिनट पहले बोरीबंदर में इसी तरह के धमाके में एक टैक्सी ड्राइवर और दो यात्रियों की जानें जा चुकी थीं। तकरीबन 15 घायल भी हुए। आतंकी हमले की यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। 26/11 के तीन बड़े मोर्चों में मुंबई का ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस शामिल था। तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे. इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड़ती रही। 29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावरों का सफाया हो चुका था और अजमल क़साब के तौर पर एक हमलावर पुलिस की गिरफ्त में था। स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ चुकी थी लेकिन लगभग 160 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी थी।