पोरबंदर के गोकुलदास और व्रजकुवर कपाडिया की पुत्री के रूप में का कस्तूरबा का जन्म हुआ। 1883 में 14 साल की कस्तूरबा का विवाह, सामाजिक परम्पराओ के अनुसार 13 साल के मोहनदास करमचंद गांधी के करवा दिया गया। उनके शादी के दिन को याद करते हुए, उनके पति कहते है की, “हम उस समय विवाह के बारे में कुछ नहीं जाते थे, हमारे लिए उसका मतलब केवल नए कपडे पहनना, मीठे पकवान खाना और रिश्तेदारों के साथ खेलना था”।
वे बापू के धार्मिक एवं देशसेवा के महाव्रतों में सदैव उनके साथ रहीं। यही उनके सारे जीवन का सार है। बापू के अनेक उपवासों में बा प्राय: उनके साथ रहीं। और उनकी सार सँभाल करती रहीं। जब 1932 में हरिजनों के प्रश्न को लेकर बापू ने यरवदा जेल में आमरण उपवास आरंभ किया उस समय बा साबरमती जेल में थीं। उस समय वे बहुत बेचैन हो उठीं और उन्हें तभी चैन मिला जब वे यरवदा जेल भेजी दी गई।
धर्म के संस्कार बा में गहरे बैठे हुए थे। वे किसी भी अवस्था में मांस और शराब लेकर मानुस देह भ्रष्ट करने को तैयार न थीं। अफ्रीका में कठिन बीमारी की अवस्था में भी उन्होंने मांस का शोरबा पीना अस्वीकार कर दिया और आजीवन इस बात पर दृढ़ रहीं।