झारखंड हाईकोर्ट ने गिरिडीह जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि वह दुकानदार अनिल वर्मा को 10 लाख रुपये का मुआवजा तीन महीने के भीतर दें। यह फैसला इसलिए आया क्योंकि प्रशासन ने झारखण्डधाम क्षेत्र में बिना उचित प्रक्रिया अपनाए और बिना अंतिम आदेश पारित किए उसकी दुकान को तोड़ दिया था। अदालत ने पाया कि प्रशासन ने सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण अधिनियम 2000 के तहत जरूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया और यह साबित करने में भी विफल रहा कि दुकान जिस भूमि पर थी वह वास्तव में सार्वजनिक भूमि थी। न्यायालय ने इस कार्रवाई को मनमानी और अवैध करार दिया।
दुकानदार अनिल वर्मा ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने राजनीतिक दबाव में आकर उसकी दुकान को निशाना बनाया, जबकि उसी इलाके में कई अन्य दुकानें मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि प्रशासन की यह कार्रवाई व्यक्तिगत भेदभाव और अनुचित शक्ति प्रयोग का उदाहरण है। अदालत ने भी इस दावे की पुष्टि करते हुए कहा कि कार्रवाई बिना किसी ठोस कारण के हुई और यह कार्यपालिका शक्ति का दुर्भावनापूर्ण प्रयोग माना जाएगा। अदालत ने विशेष रूप से यह नोट किया कि अंतिम आदेश पारित किए बिना दुकान तोड़ना पूरी तरह अवैध था।
अदालत ने अंततः गिरिडीह के उपायुक्त को निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर अनिल वर्मा को 10 लाख रुपये मुआवजा प्रदान करें। साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को अधिकार दिया कि वह राजस्व के लिए इस राशि को दोषी अधिकारी से वसूल कर सकती है।