मनरेगा योजना के तहत डोभा बनाने के नाम पर रोजगार सेवक ने कर ली सारे पैसे की निकासी, डोभा बना ही नहीं, जिस लाभुक के नाम पर योजना हुआ आवंटित उसे कुछ पता ही नहीं, जब बीडीओ ने दिए कार्यवाही के निर्देश तो रोजगार सेवक ने आनन-फानन में बिना जॉब कार्ड धारी मजदूरों व बच्चों को डोभा बनवाने में उतार दिए
रिपोर्ट – आनन्द बरनवाल
प्लेस – तीसरी, गिरिडीह
गिरिडीह जिले के तमाम प्रखंडों में इन दिनों में मनरेगा योजनाओं में घोटाले व अनियमितता की लगातार खबरें दर्ज की जा रही है. इस घोटाले में जनता नहीं बल्कि ब्लॉक स्तर के अधिकारीगण शामिल होते हैं। इन अधिकारियों में अक्सर रोजगार सेवक, पंचायत सेवक और इंजीनियर की मिलीभगत होती है। इसी तरह घोटाले का एक मामले सामने आया है हैं जिले के तीसरी प्रखंड के थानसिंहडीह पंचायत से जहां पर डोभा बनाने के नाम पर सारे पैसे की निकासी रोजगार सेवक के द्वारा कर लिया गया और डोभा बना ही नहीं। इससे भी हैरत वाली बात यह है कि जिस लाभुक चंद्रीका कमहार के नाम पर योजना का आवंटन हुआ है उसे कुछ पता ही नहीं है कि कितना पैसा आया है। इस घोटाले पर जब city news की टीम ने प्रखंड विकास पदाधिकारी संतोष प्रजापति से बात किया तो उन्होंने रोजगार सेवक कांग्रेस राणा के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। जिसके बाद रोजगार सेवक बौखला गया और उन्होंने कार्रवाई से बचने के लिए तुरंत आनन-फानन में डोभा बनवाने का काम शुरू कर दिया और इस कार्य में रोजगार सेवक ने बिना जॉब कार्ड धारी मजदूरों व बच्चों को उतार दिया गया। आपको बता दें कि मनरेगा योजना में वही मजदूर काम कर सकते हैं जिसके पास जॉब कार्ड बना हुआ है। बताया जाता है कि इस योजना का आवंटन चंद्रिका कमहार के नाम पर किया गया है। हालांकि सारे पैसे की निकासी रोजगार सेवक ने करके अपने पास ही रख लिया और लाभुक को पता ही नहीं है। जब ऑनलाइन चेक किया गया तो पता चलता है कि लगभग सवा लाख रुपए की निकासी कर ली गई है। आपको बता दें कि इस तरह के घोटाला गिरिडीह में कोई नया नहीं है। इस तरह के मामले लगातार आते रहते हैं कि पंचायत सेवक, रोजगार सेवक, इंजीनियर और प्रखंड विकास पदाधिकारी एक दूसरे से सामंजस्यता बैठा कर पैसे की निकासी कर आपसी बंदरबांट कर लेते हैं और धरातल पर काम निल बटे सन्नाटा होता है। और कानों कान जिस लाभुक के नाम से पैसे निकलते हैं, योजना पास होते हैं उनको पता ही नहीं चलता है। क्योंकि आपको बता दें कि गिरिडीह जिले के सुदूरवर्ती गांव में बहुत सारे ऐसे ग्रामीण हैं जो टेक्नोलॉजी व स्मार्टफोन वगैरह से बहुत दूर हैं उन्हें जो अधिकारी आकर बता देते हैं वही मान लेते हैं। किसके नाम पर कितनी योजनाएं चल रही है, किसके नाम से कितने पैसे निकाल कर लिए गए हैं अधिकारियों के अलावा किसी को नहीं पता होता है।