झारखंड।
आज का दिन झारखंड के इतिहास में एक गहरे शोक का दिन बन गया है। झारखंड के निर्माता, आदिवासी चेतना के पुरोधा, संघर्ष की जीवित मिसाल और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी का निधन हो गया है। उनका जाना केवल एक राजनेता का जाना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है — एक विचार, एक आंदोलन और एक उम्मीद का अंत।

आज जब झारखंड की फिजा शांत है, जंगल सिसक रहे हैं, नदियां और पहाड़ मौन हैं — तब झारखंड की आत्मा रो रही है। दिशोम गुरु के रूप में हमें एक ऐसा नेतृत्व मिला था, जो न कभी झुका और न ही कभी थका। उन्होंने झारखंड को केवल एक राज्य नहीं, बल्कि एक पहचान दी थी। उनके शब्दों में, “झारखंड सिर्फ भूगोल नहीं, यह हमारी आत्मा है।”

उनका जीवन संघर्षों की गाथा है — कभी जमींदारी प्रथा के खिलाफ, कभी राजनीतिक उत्पीड़न के खिलाफ और कभी व्यवस्था की असंवेदनशीलता के खिलाफ। उन्होंने आदिवासियों, वंचितों और शोषितों की आवाज बनकर लड़ाई लड़ी, जेल गए, जान को खतरे में डाला — लेकिन कभी पीछे नहीं हटे।

दिशोम गुरु ने हम सबको सिखाया कि राजनीति केवल सत्ता पाने का जरिया नहीं, बल्कि अपने लोगों से प्रेम करने का, उनके दुःख को समझने और उनके हक के लिए आवाज़ उठाने का संकल्प है। उन्होंने झारखंड के हर कोने में उम्मीद का दीप जलाया और एक समतामूलक, स्वाभिमानी तथा स्वशासी झारखंड का सपना देखा।

आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तब उनका संघर्ष और उनकी प्रेरणा ही हमारा मार्गदर्शक बनेंगे। उनका जीवन एक दीपक की तरह था — जो खुद जलता रहा लेकिन औरों को रौशनी देता रहा।
झारखंड मुक्ति मोर्चा परिवार की ओर से और समस्त झारखंडवासियों की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

अंतिम जोहार, दिशोम गुरु!